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Q. शैव धर्म के इतिहास में कायावरोहण का क्या महत्व हैं ?

  • (A) यह पाशुपत सम्प्रदाय के एक प्रमुख लक्षण पशुपाश -विमोक्षण से अभिन्न हैं
  • (B) यह लकुलीश का जन्म-स्थान था
  • (C) यह कापालिकों के व्रतों में से एक व्रत था
  • (D) यह कालामुख सम्प्रदाय के अनुयायियों के लिए निर्धारित एक धार्मिक कृत्य था

Explanation by: Admin

कायावरोहण (Kayavarohana) गुजरात में स्थित एक प्राचीन तीर्थस्थल है, जिसे लकुलीश का जन्म-स्थान माना जाता है।

  • लकुलीश (Lakulisha) पाशुपत संप्रदाय के संस्थापक माने जाते हैं, जो शैव धर्म की एक प्रमुख परंपरा थी।
  • उन्होंने पाशुपत संप्रदाय का प्रचार किया, जो बाद में भारत के कई हिस्सों में फैल गया।
  • यह स्थल शिव उपासना और योग साधना का केंद्र रहा है।

अन्य विकल्पों का विश्लेषण:

  • (A) यह पाशुपत सम्प्रदाय के एक प्रमुख लक्षण पशुपाश-विमोक्षण से अभिन्न है – यह कथन सही नहीं है, क्योंकि पशुपाश-विमोक्षण पाशुपत संप्रदाय की एक आध्यात्मिक अवधारणा है, लेकिन इसका विशेष संबंध कायावरोहण से नहीं है।
  • (C) यह कापालिकों के व्रतों में से एक व्रत था – कापालिक संप्रदाय और उनके व्रतों से कायावरोहण का कोई सीधा संबंध नहीं है।
  • (D) यह कालामुख सम्प्रदाय के अनुयायियों के लिए निर्धारित एक धार्मिक कृत्य था – कालामुख संप्रदाय शैव धर्म की एक शाखा थी, लेकिन कायावरोहण उनसे अधिक पाशुपत संप्रदाय से जुड़ा हुआ था।

निष्कर्ष:

कायावरोहण को लकुलीश का जन्म-स्थान माना जाता है।
इसलिए सही उत्तर (B) यह लकुलीश का जन्म-स्थान था है।

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